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UTTAR PRADESH-UP HIGHER JUDICIAL SERVICES (MAINS) EXAMINATION 2009

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MARKS:60

The individual is the passenger in the chariot of the material body, and intelligence is the driver. Mind is the driving instrument, and the senses are the horses. The self is thus the enjoyer or sufferer in the association of the mind and senses. So, it is understood by great thinkers.

The individual consiciouness or the life particle is compared to the passenger because he is the chief occupant and thus enjouer or sufferer of the journey. The horses indicate the senses that always drag the chariot of the human body to the objects of the senses. Intelligence is compared to he driver because the driver employs necassary discrimination for a successful and comfortable journey. Reins are compared to the mind because they are directly connected to the horses(senses) and are guided by the driver (intelligence). An able driver (intelligence) takes to properly guide the chariot towards its destination by discrimination. In this way the passenger or the soul can reach the desired destination by proper use of all the faculties . On the other hand, if any of the faculties are not controlled and coordinated properly in the hierarchy ,sooner or later there may be an accident.

Many spiritual traditions of the world, specifically the Vedic tradition of India have proclaimed that conciousness is a distinct reality in nature other than particles and waves. Some modern scientists have also supported this ancient wisdom. For example, Thomas Huxley remarked, "It seems to me pretty plain that there is a third thing in the universe, to writ, consicouness, which..... I of either." Similar observation is echoed in the words of the renowned physicist , Eugene, Wigene, Wiger, who started, "There are two kinds of reality or existence; the existence of my conciousness and the reality or existence of everything else."

According to Vedanta, Human activities are carried out by the will of the concious life particle, which is then translated through the intelligence and mind to the human body. Mind intersacts with bisy through the brain. The brain is like the central processing unit of a computer where all signals for activites come in and also go out, but it functions according to the will of the programmer. John Eccles suggested phychon as the fundamental unit of the mind and it interacts with the brain through dendrons. Karl Probram has suggested that psychon is something like a Gabor functions, a wave functions. However, Vendata indicates that the life particle lies beyond particle and intelligence is a highly complex interaction and may will lie beyond the scope of modern science.

It will be narural that modrn biologists and biochemists should include that study of consciousness in their research works. The field should not be left mainly to the neuroscientists, quantum physicists, psychologists and philosophers only

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Comments (1)

  • lochangupta

    मन मस्तिष्क और इन्द्रियों का समन्वय - एक प्रयास व्यक्ति शरीर रूपी रथ में यात्री है और बुद्धि उसका सारथी | मस्तिष्क रथ को चलने वाला यन्त्र है और इन्द्रियां घोड़े हैं | मस्तिष्क और इन्द्रियों के मेल से हमारी आत्मा या तो खुश होगी या दुखी | बड़े दार्शनिक तो ऐसा ही मानते हैं | व्यक्तिगत चेतना या ज़िन्दगी के कण की तुलना यात्री से की जाती हैं क्योंकि वही इसका मुख्य यात्री है और इसलिए यात्रा का मज़ा लेता है या दुखी होता है | घोड़े इन्द्रियां दर्शाते हैं क्योंकि मानव शरीर रूपी रथ को हमेशा इन्द्रियों की तरफ खींचते हैं | बुद्धि की तुलना चालक से की जाती है क्योंकि चालक ही अपनी समझ से यात्रा को ठीक या आरामदायक बनाता है | घोड़े की लगाम की तुलना मस्तिष्क से की जाती है क्योंकि वह सीधे तौर पर घोड़ों ( इन्द्रियों) से जुडी होती है और चालक (बुद्धि) द्वारा नियंत्रित होती हैं | एक योग्य चालक (बुद्धि) के द्वारा सही दिशा दिखा कर मंज़िल तक ले जाता है | इस तरह यात्री अथवा आत्मा योग्यताओं का सही इस्तेमाल कर के वांछित लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है | दूसरी तरफ यदि कोई अपनी योग्यता का क्रमबद्ध और नियंत्रित तरीके से इस्तेमाल नहीं करता तो देर - सवेर उसके साथ दुर्घटना हो सकती है | दुनिया के कई धार्मिक रीति - रिवाज़ ख़ास तौर पर भारत के वैदिक ग्रंथों में कहा गया है कि चेतना प्रकृति का एक सत्य है | कुछ आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी पुरातन बुद्धि का समर्थन किया है | उदाहरणतः थॉमस हक्सले ने कहा था, " मुझे साफ़ तौर पर लगता है कि इस ब्रह्माण्ड में एक तीसरी चीज़ भी है |" प्रसिद्ध बौद्धिक वैज्ञानिक यूजीने, विजन, विगेर के शब्दों में ऐसी ही बात झलकती है जिन्होंने कहा कि असलियत दो तरह कि है, एक हमारी चेतना और दूसरी बाकी चीज़ों के अस्तित्व की | वेदांता के मुताबिक व्यक्तिगत क्रियाएँ भौतिक जीवन की इच्छाओं पर आधारित है जो की व्यक्ति के शरीर में बुद्धिमता और सजगता से पहुँचती है | सजगता मस्तिष्क के सही दिशा सही दिशा में सोचने से आती है | हमारा मस्तिष्क कंप्यूटर की केंद्रिय इकाई के जैसा है जिसकी सहायता से हम अपनी इच्छा अनुसार कार्य करते हैं | जॉन एसक्लेस ने तो मस्तिष्क में पिचों को चेतना का सबसे छोटा भाग कहा है जो कि डेन्ड्रोन्स के साथ मिल कर काम करता है | कार्ल प्रॉब्रम ने सुझाया है कि पिचों को हम किसी चेतनात्मक ऊर्जा कि तरह मान सकते हैं हालांकि वेदांता ने मन है कि चेतना किसी जीवाणु से पर है और बुद्धिमता एक जटिलता है जो कि आधुनिक विज्ञानं से पर है | इसलिए आधुनिक भौतिक शास्त्रियों का इसे अपने अध्ययन में रखना बहुत ज़रूरी हो जाता है | यह अध्ययन केवल मस्तिष्क विशेषज्ञ, परमाटा विशेषज्ञ, मनोचिकित्सकों और दार्शनिकों तक सिमित नहीं रहना चाहिए |

    4/1/2015
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