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अदालत ने फैसले में कहा कि मामले की तफ्तीश करने वाली एजेंसी ने जैसा कहा है वह साफ तौर पर उसका अति तकनीकी वाला मत है कि उस वक्त युवती की उम्र 18 साल से महज कुछ माह ही कम थी।  कोर्ट ने कहा कि सारवान न्याय देने के लिए कोर्ट अपनी शक्तियों की किसी सीमा में नहीं बंध सकता और मामले के हालात में अगर नाइंसाफी होने जा रही हो तो इसको महज देखते रहने वाला बना नहीं रह सकता। कोर्ट ने कहा-चूंकि युवती ने अभियोजन केस का समर्थन नहीं किया है, ऐसे में मामले के ‘ट्रायल’(विचारण) की कार्रवाई का कोई नतीजा नहीं निकलेगा।  अदालत ने कहा कि मामले के तथ्यों व हालात के मद्देनजर मामले में शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही (एफआईआर वगैरह) अदालती व कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग कर शुरू की गईं। जो कानून में स्वीकार्य नहीं है। ऐसा अभियोजन याचियों को अपने मन (विवेक) से शादी करने केसंवैधानिक हक में बाधक होगा खासतौर पर जहां ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि यह शादी शून्य है। तकनीकी की बेदी पर न्याय की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती अदालत ने कहा कि युवती मां बनने वाली है और उसे 31 हफ्ते का गर्भ है।  उसने अपने बयान में खुद के अपहरण,जोर दबाव या लालच बगैरह की बात भी नहीं कही है। बल्कि उसने युवक के साथ बतौर पति-पत्नी रहने की बात कही है। ऐसे में अदालत का मत है कि तकनीकियों की वेदी पर सारवान (सब्सटेंशियल)न्याय की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती।  ऐसे में यह भी नहीं कहा जा सकता कि युवक ने बहला-फुसलाकर युवती को भगा ले जाने के आरोपों वाला अपराध किया है,लिहाजा यह याचिका मंजूर किए जाने पर इंसाफ की मंशा पूरी होगी। अदालत ने इस टिप्पणी केसाथ याचिका मंजूर कर ली और मामले में दर्ज कराई गई एफआईआर समेत इससे संबंधित पूरी आपराधिक कार्यवाही रदद् कर दी।

Paragraph Source: http://lucknow.amarujala.com/feature/city-news-lkw/parents-cant-case-on-daughter-s-love-marriage-hindi-news/page-2/

 

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